04-10-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"संकल्प शक्ति का महत्व"

सर्वसिद्धि स्वरूप बनाने वाले बापदादा बोले:-

बापदादा सर्व बच्चों को अन्तिम स्टेज अर्थात् सम्पन्न और सम्पूर्ण स्टेज-इसी शक्तिशाली स्थिति का अनुभव कराते हैं। जिस स्थिति में सदा मास्टर सर्वशक्तिवान, मास्टर ज्ञानसागर, सर्व गुणों में सम्पन्न, हर संकल्प में, हर श्वास में हर सेकेण्ड सदा साक्षी-द्रष्टा और सदा बाप के साथीपन का, सर्व ब्राह्मण परिवार की श्रेष्ठ आत्माओं के स्नेह, सहयोग के साथीपन का सदा अनुभव होगा। ऐसे अनु- भूति होगी जैसे साइंस के साधनों द्वारा दूर की वस्तु समीप अनुभव करते हैं। ऐसे दिव्य बुद्धि द्वारा कितनी ही दूर रहने वाली आत्माओं को समीप अनुभव करेंगे। जैसे स्थूल में साथ रहने वाली आत्माओं को समीप अनुभव करेंगे। जैसे स्थूल में साथ रहने वाली आत्मा को स्पष्ट देखते, बोलते, सहयोग देते और लेते हो, ऐसे चाहे अमेरिका में बैठी हुई आत्मा हो लेकिन दिव्य-दृष्टि, दिव्य दृष्टि ट्रान्स नहीं लेकिन रूहानियत भरी दिव्य दृष्टि- जिस दृष्टि द्वारा नैचुरल रूप में आत्मा और आत्माओं का बाप भी दिखाई देगा। आत्मा को देखूँ यह मेहनत नहीं होगी, पुरूषार्थ नहीं होगा लेकिन हूँ ही आत्मा, हैं ही सब आत्मायें। शरीर का भान ऐसे खोया हुआ होगा जैसे द्वापर से आत्मा का भान खो गया था। सिवाए आत्मा के कुछ दिखाई नहीं देगा। आत्मा चल रही है, आत्मा कर रहीं है। सदा मस्तक मणी के तरफ तन की ऑखे वा मन की ऑखे जायेंगी। बाप और आत्माएं- यही स्मृति निरन्तर नैचुरल होगी। उस समय की भाषा क्या होगी? श्रेष्ठ संकल्प की भाषा होगी। भाषण करने वाले नहीं, आत्मिक आकर्षण करने वाले होगें। बोलने से नहीं लेकिन स्थिति के द्वारा, श्रेष्ठ जीवन के दर्पण द्वारा सहज ही स्वरूप अनुभव करायेंगे। मुख के बजाए नयन ही स्वरूप अनुभव कराने के साधन बन जायेंगे। नयनों की भाषा संकल्प की भाषा है। संकल्प शक्ति आपके मुख के आवाज की गति से भी तेज गति से कार्य करेगी। इसलिए श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति को ऐसे स्वच्छ बनाओ जो जरा भी व्यर्थ की अस्वच्छता भी न हो। जिसको कहा जाता है लाइन क्लीयर।

इस संकल्प शक्ति द्वारा बहुत ही कार्य सफल होने की सिद्धि के अनुभव करेंगे। जिन आत्माओं को, जिन स्थूल कार्यों को वा सम्बन्ध सम्पर्क में आने वाली आत्माओं के संस्कारों को, मुख द्वारा वा अन्य साधनों द्वारा परिवर्त्तन करते हुए भी सम्पूर्ण सफलता नहीं अनुभव करते, वे सब उम्मीदें संकल्प शक्ति द्वारा सम्पूर्ण सफल ऐसे हो जायेंगी जैसे हुई पड़ी थीं। चारों ओर जैसे स्थूल आकाश में भिन्न-भिन्न सितारे देखते हो ऐसे विश्व के वायुमण्डल के आकाश में चारों ओर सफलता के सितारे चमकते हुए देखेंगे। वर्त्तमान समय उम्मीदों के तारे और सफलता के तारे दोनों दिखाई देते हैं लेकिन अन्तिम समय, अन्तिम स्थिति, बाप के अन्त में खोये हुए श्रेष्ठ स्थिति में सफलता के सितारे ही होगे। यह रूहानी नयन, यह रूहानी मूर्त्त ऐसे दिव्य दर्पण बन जायेगी- जिस दर्पण में हर आत्मा बिना मेहनत के आत्मिक स्वरूप ही देखेगी। सेकेण्ड में इस दर्पण द्वारा आत्मिक स्वरूप का अनुभव करने के कारण बाप की तरफ आकर्षित हो, अहो प्रभू के गीत गाते, देहभान से सहज अर्पण हो जायेंगे। अहो आपका भाग्य! ओहो मेरा भाग्य! इस भाग्य की अनुभूति के कारण देह और देह के सम्बन्ध की स्मृति का त्याग कर देंगे क्योंकि भाग्य के आगे त्याग करना अति सहज है।

आप सब भी इस सहज त्याग और भाग्य को लेने चाहते हो वा देने वाले बनने चाहते हो? यह तो नहीं सोचते हो कि इतने वर्षों की मेहनत से तो अन्त समय सहज त्याग और भाग्य वाले बन जाएं, क्या पसन्द है? अन्त में सहज अनुभव जरूर करेंगे लेकिन कितने समय का अनुभव होगा? जितने थोड़े समय की पहचान उतने ही थोड़े समय के लिए प्राप्ति। आप सब बहुकाल के साथी हो और बहुकाल के राज्य अधिकारी हो। अन्त की कमजोर आत्माओं को महादानी वरदानी बन अनुभव का दान और पुण्य करो। यही सेकेण्ड का शक्तिशाली स्थिति द्वारा किया हुआ पुण्य आधाकल्प के लिए पूजनीय और गायन योग्य बना देगा। क्योंकि अन्तिम काल में आत्माओं के अन्तिम समय में आप सम्पूर्ण आत्माओं द्वारा प्राप्ति के अनुभव और सम्पूर्ण स्वरूप के प्रत्यक्षता का सम्पन्न स्वरूप, यही अन्तिम अनुभव का संस्कार लेकर आत्माए आधाकल्प के लिए अपने घर में विश्रामी होगीं। कुछ प्रजा बनेंगी, कुछ भक्त बनेंगी इसलिए अन्त काल जो अन्त मती सो द्वापर में भक्तपन की गति में अर्थात् श्रेष्ठ भक्त माला के शिरोमणि आत्मायें बन जायेंगी। कोई विश्व अधिकारी के रूप में देखेंगे, कोई प्रजा बनने के संस्कार कारण आपके राज्य में प्रजा बन जायेंगी। कोई अति पूज्य स्वरूप में देखेंगे तो भक्त आत्मायें बन जायेंगे। ऐसी श्रेष्ठ स्थिति, जिस स्थिति द्वारा इतनी सिद्धि को पायेंगे, ऐसी श्रेष्ठता का अनुभव कर रहे हो? संकल्प के æखज़ाने के महत्व को जानते हुए श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति जमा कर रहे हो? समझा अन्तिम स्टेज क्या है?

बापदादा भी तो आवाज से परे जायेंगे या आवाज में ही आयेंगे? प्रैक्टिस करो आवाज में कम आने की तो आवाज से परे की स्थिति स्वत: ही आकर्षण करेगी। पहला गेट तो आवाज से परे जाने का खुलता है ना! तो गेट खोलने का उद्घाटन कब करेंगे? और तो उद्घाटन बहुत करते हो ना- मधुबन में? इसका उद्घाटन बापदादा अकेले करेंगे या साथ मे करेंगे? तो तैयार हो? अच्छाफिर दूसरे बारी इसका हिसाब लेंगे। हिसाब तो लेना पड़ेगा ना! अच्छा-

ऐसे सर्व सिद्धि-स्वरूप आत्माओं को, संकल्प शक्ति द्वारा सर्व की श्रेष्ठ कामनाओं को पूर्ण करने वाले, स्व के सम्पन्न दर्पण द्वारा सर्व आत्माओं को निजी स्वरूप दिखाने वाले, बाप को प्रत्यक्ष कर सर्व शक्तियों के वरदानी स्वरूप पुण्य आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

टीचर्स के साथ - ‘‘यह सेवाधारी ग्रुप है। टीचर्स नहीं सेवाधारी। बाप भी सबसे पहले सेवाधारी बन करके आते हैं। सबसे बडे ते बड़े टाइटल बाप अपने ऊपर वर्ल्ड सवेन्ट का ही रखते हैं। तो जैसे बाप का टाइटल है वैसे बच्चों का भी। सेवाधारी समझने से स्वत: ही निर्विघ्न हो जाते। क्योंकि सेवाधारी अर्थात् त्यागी और तपस्वी। जहाँ त्याग और तपस्या है वहाँ भाग्य तो उनके आगे दासी के समान आता ही है। तो सभी सेवाधारी हो ना! टीचर बनकर नहीं रहना, सेवाधारी बनकर रहना। नहीं तो क्या होता है, अगर आप अपने को टीचर समझेंगी तो आने वाले थोड़ा भी आगे बढ़ेगे तो वे भी अपने को टीचर समझने लगेंगे। टीचर समझने से सूक्ष्म यह कामना उत्पन्न होती कि कोई गद्दी मिले, कोई स्थान मिले। यह भी माया का बहुत बड़ा विघ्न है। टीचर हूँ तो सीट चाहिए, मान चाहिए, शान चाहिए। सेवाधारी देने वाले होते, लेने वाले नहीं। तो जैसे आप निमित्त आत्मायें होगी वैसे और भी आपको देखकर सेवाधारी सदा रहेंगे। फिर चारों ओर त्याग तपस्या का वातावरण रहेगा। जहाँ त्याग और तपस्या का वातावरण है वहाँ सदा विघ्नविनाशक की स्टेज है। तो सभी सेवाधारी हो ना! टीचर कहने से स्टूडेन्ट कहते हम भी कम नहीं, सेवाधारी कहने से सब नम्बरवन भी हैं तो एक दो से कम भी हैं। तो नाम भी अपना सेवाधारी समझो और चलो। सारे विघ्नों की जड़ है अपने को टीचर समझकर स्टेज लेना। फिर फॉलो टीचर करते हैं, फॉलो फादर नहीं करते।

वृद्धि को तो पा ही रहे हो, अभी वृद्धि के साथ विधि पूर्वक वृद्धि को पाते चलो। विधि कम होती है तो वृद्धि में विघ्न ज्यादा होते। तो विधि सम्पन्न वृद्धि को पाने वाले बनो। मेहनत अच्छी कर रहे हो।

पार्टियों से:-

सभी सदा सुख के सागर बाप की स्मृति में रहते हुए स्वरूप का अनुभव करते हो? क्योंकि सुख के सागर के बच्चे हो। तो जैसे बाप सुख का सागर है वैसे बच्चे भी सुख-स्वरूप हैं। मास्टर हैं ना! तो सदा दु:ख की दुनिया में रहते हुए सुख स्वरूप हैं। मास्टर हैं ना! कभी भी दु:ख की लहर तो नहीं आती? चाहे दुनिया में कितना भी दु:ख अशान्ति का प्रभाव हो लेकिन आप न्यारे और प्यारे हो क्योंकि आप सुख के सागर के साथ हो। ऐसे सदा सुखी, सदा सुखों के झूले में झूलने वाले अपने को अनुभव करते हो? संकल्प में भी दु:ख नहीं। दु:ख का संकल्प आना यह भी मास्टर सुख के सागर के बच्चों का नहीं। क्योंकि आत्मा दु:ख की दुनिया से किनारा कर संगम पर पहुँच गई। किनारा छोड़ चुके हो ना! छोड़ा है कि अभी दु:ख की दुनिया में हो? कोई रस्सी बँधी हुई तो नहीं है ना? सब रस्सियाँ टूट गई हैं? जब सब रस्सियाँ टूट गई तो सुख के सागर में लहराते रहो। नहीं है ना? सब रस्सियाँ टूट गई हैं? जब सब रस्सियाँ टूट गई तो सुख के सागर में लहराते रहो।